बाबा जिंदा धाम पर लगे सभी आरोप निराधार

मेरी एक बात समझ मे नही आती गांव में सरपंच का काम के हो है। यही होता होगा ना के गांव में शांति बनी रह काम चाहे 2 कम हो जावे पर जब से सरपंच साहब बने है काम तो घनी दूर की बात है गांव में लड़ाई खत्म ना हो ली।

बाबा जिंदा धाम

सरपंच साहब 1 मामला ऐसा बता दे जो इन्होंने गांव में सुलझाया हो ये तो बाट में रह है कद किसे का जूत बाजे और तू चौकी में दरख्वास्त लिखवाने जावे। मोई गांव ने बाबा जिन्दे की वजह से जाने है लोग, पर इन्होंने बाबा जिन्दे का नाम खराब करने में कोई कमी नही छोड़ रखी।

ये खुद तो आर्यसमाजी है इनको क्या पता धार्मिक भावना क्या हो है। मेरी 1 बात समझ नही आती बाबा जी को 20 साल हो गए यंहा 2 साल पहले तक तो ठीक थे फिर 2 साल में क्या बदल या ऐसा क्या हो गया जो सरपंच साहब ने इतनी कमी दिखे है। सरपंच बनते ही तो 5100 रुपए इन्ही बाबा जी के चरणों मे चढ़ा के आये थे आज ये गलत हो गए।

1. पहले तो इन्होंने अपना लड़का हरिद्वार भेजा बाबा बनने के लिए, जिस बाबा के पास ये रहा वँहा से जूत मार के भगाया।

2. उसके बाद गांव में भोले का मंदिर बनाया न्यू सोच के बनाया था वो भी के जो लोग बाहर से मेले में आवे है इसी ने बाबा जिंदा समझ के आड़े चढ़ावा चढ़ा देंगे पर वँहा भी इनके हाथ कुछ नही लगा वो भी बिज़नेस फैल हो गया।

3. फेर सरपंच बनते ही इन्होंने प्लान बनाया 1 कमेटी बना के बाबा जिन्दे पे कब्ज़ा कर ले भतेरी कोशिश की काम ना चला तो बाबा जी ने गलत बताने लग गए। इनका पेट तो यंहा भी नही भरा तो जंगल बेच दिया कदे कोई गरीब आदमी भैंस चरा ले। जिस तालाब ने आज तक म्हारे बूढ़े जसपाल आला जसपाल आला बोलते आये उसको ये गढ़ा बता रहे है।

मेरी 1 बात नही समझ मे आती कोई पूछने वाला हो तो हामने कभी 100 रुपए तो दिए नही मंदिर में के ये लो मेरी तरफ से 100 रुपए और मंदिर में ये काम करवा लेना, फेर ये हिसाब कैसे मांग रहे है। सरपंच पहले भी बहुत बने गाम में पर ऐसे कदे नही।

इलेक्शन के टाइम पे लोगा में थोड़ी तू तू मैं मैं हो भी जाया करती तो थोड़े दिन में लोग भूल जाया करते पर अबकी बार सवा 2 साल हो गए इलेक्शन ने पर पार्टीबाजी खत्म नही हुई गाम में। आज गांव में ऐसी सिचुएशन है के गाम गुहाड भी ये कह है के मोई में आदमी मरेगा चाहे मारियो कोई।

गाम में 2 धड़े हो रहे है जिनमे से अगर 1 भी बालक के कुछ हो गया तो उसके घर वाले रोवेंगे इसका के जाना है इनको तो कोई फर्क नही पड़ना। अगर थोड़ा सा भी फर्क पड़ता तो ये इतनी बात ना बढ़ने देते। बड़े बुजर्गो का काम हो है गाम में लड़ाई हो जावे तो दोनों पार्टियों का समझौता करवाना चाहे इसमें किसी के पैर पकड़ने पड़ो चाहे किसी के हाथ जोड़ने पड़ो।

पर यंहा खुद सरपंच बुजर्ग हो के भी बालका ते आगे लिकड़ गए। आज तक मैंने इतना झूठा और स्वार्थी आदमी मैंने नही देखा जो अपने स्वार्थ के लिए गांव में ऐसा माहौल बना कर बैठा है। और इस माहौल को तैयार करने में हम सबका हाथ है जो इस मामले पर चुप चाप बैठे है अगर गांव में कोई भी दुर्घटना होती है तो इसका जिम्मेवार सरपंच रामनिवास होगा।

[स्रोत- सहदेव]

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