कमजोर विपक्ष के चलते खतरे में हो सकता है लोकतंत्र

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यहां कई धर्मों के जातियों के संप्रदायों के उप जातियों के लोग रहते हैं तथा यहां कई प्रकार की व्यवस्थाएं पाई जाती हैं किंतु सबसे अच्छी बात यह है किं संपूर्ण भारत के नागरिक अपने आपको एकजुट मानते हैं. 1 कारण यह है कि भारत में सभी को समान अवसर प्राप्त है हमारे संविधान का पालन यहां की व्यवस्थाओं परिस्थितियों और देश काल के अनुसार किया जाता है संसार में इतना बड़ा कोई देश नहीं है जिसमें पूर्णत: लोकतांत्रिक व्यवस्था हो किंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए महसूस हो रहा है कि लोकतंत्र खतरे में है देश की स्वतंत्रता के पश्चात से से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि विपक्ष इतना कमजोर रहा हो.Democracy in Indiaवर्तमान में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं है केंद्र की रीढ़ की हड्डी लोकसभा ही होता है और नेता प्रतिपक्ष ना होना इतना बड़ा विषय नहीं है जितना कि विपक्ष में बैठे लोगों की अकर्मण्यता है अगर कोई भी नेता विपक्ष में बैठता है तो उसका दायित्व बनता है कि वह सरकार की नीतियों की निगरानी करें और जहां आवश्यकता हो वहां अपने सुझाव प्रभावशाली तरीके से रखें जरूरी यह भी है कि प्रभावशाली तरीका कैसा हो आज विरोध तो किया जाता है लेकिन ना तो प्रभावशाली विरोध होता है ना ही देश अनहित का विरोध होता है न हीं जनता को प्रिय लगने वाला विरोध होता है. आज विरोध करने के लिए विरोध किया जाता है जो कि उचित विरोध नहीं है इसीलिए विपक्ष के साथ जनमत जुड़ता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.

अगर आप के मुद्दे दमदार हैं लोग आपके साथ जुड़ते हैं विपक्ष बहुत बड़ा है लेकिन मजबूत नहीं है कारण यह है कि विपक्ष का कोई भी नेता सर्वमान्य नेता नहीं है इसीलिए पार्टियां कोशिश तो करती हैं कि महागठबंधन अथवा अलग-अलग नामों से हम एकजुट होकर सरकार का मजबूत विरोध करें लेकिन उसी समय सर्वमान्य नेता की कमी खलने लगती है या यूं कहा जाए कि राहुल गांधी को संपूर्ण विपक्ष एक मत से नेता मानना नहीं चाहता है और कांग्रेस किसी और नेता को अपना नेता स्वीकार करने में आनाकानी करती है.

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कारण यही है कि कांग्रेस के साथ, भाजपा के अनेक विरोधी हैं और वह मजबूत भी हैं वामपंथी पार्टियां हैं सपा बसपा है दक्षिण भारत की पार्टियां हैं जो बीजेपी के साथ नहीं है वो कांग्रेस के साथ आ सकते हैं लेकिन कांग्रेस में कोई नेता ऐसा दिखाई नहीं देता है जो इन सब पार्टियों को नेतृत्व दे सके यह कहा जा सकता है! विपक्ष केवल प्रतिभावान न होना, एक कमी से नहीं गुजर रहा है ऐसी कई कमियों से गुजर रहा है जो कि विपक्ष के लिए अति अनिवार्य है दूसरे कमी यह भी है कि विपक्ष के नेताओं के पास मजबूत अध्ययन नहीं है सरकार का मूल्यांकन नहीं है.

जनता के सामने अथवा सदन में पेश किए गए आंकड़ों की प्रमाणिकता नहीं है वैकल्पिक रूट चार्ट नहीं है वैकल्पिक नीति नहीं है अपनी बात मनवाने का ढंग नहीं है अपनी बात को सरकार तक पहुंचाने की दूसरे माध्यम नहीं जानते हैं उदाहरण के लिए यह कहा जा सकता है कि जब यूपीए-2 की सरकार सत्ता में रही थी तब भाजपा विरोध करती थी लेकिन विरोध के लिए उनके पास मजबूत जानकारी और प्रमाण तक हुआ करते थे विकल्प हुआ करते थे अगर सरकार किसी बात को माने तो क्यों माने इस बात का मजबूत जवाब होता था सरकार की कमी क्या है और इसके क्या दुष्परिणाम होंगे इस बात को साबित करने के सबूत होते थे.

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केवल बीजेपी की बात छोड़ दीजिए अगर दूसरे मुद्दों पर जिनमें बीजेपी का विरोध हुआ है उनको भी देखें ता महाराष्ट्र में BJP के साथ है शिवसेना लेकिन उनका विरोध प्रकट करने का अपना अंदाज है सरकार को बुरा भला कहे बगैर सरकार के कामों की समीक्षा करते हैं क्योंकि विपक्ष मैं नहीं है इसलिए उस प्रकार का विरोध करना जायज बनता है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जो वहां एनसीपी और कांग्रेस को करना चाहिए वह काम शिवसेना कर रही है.

या यूं कहा जाए कि कांग्रेस में अब जो नेता हैं उनके लिए राजनीति पार्ट टाइम व्यवसाय है और पार्ट टाइम व्यवसाय को अपेक्षित टाइम नहीं मिल पाता है या कहें कि कांग्रेस में नेता कम उद्योगपति ज्यादा है जो ना तो अपने कार्यकर्ताओं पर ही ध्यान दे पाते हैं और ना ही सरकार पर ध्यान दे पाते हैं और ना किसी अन्य को विपक्ष में आने के लिए अवसर पैदा कर पाते हैं यह सब बातें तो हुई इसलिए कि कमजोर विपक्ष हैं.

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लेकिन सरकारभी बहुत सकारात्मक नहीं है लोकसभा में बजट सत्र के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा जो भाषण दिया गया वह ना तो बजट से संबंधित था और ना ही जनता के हितों से जुड़ा हुआ था विपक्ष को चित् करने की एक सफल और सोची समझी चाल थी और यही विपक्ष की कमजोरी है कि सरकार की चाल को कामयाब होने देती है प्रधानमंत्री मोदी का मिशन है कांग्रेस मुक्त भारत लेकिन साथियों ध्यान रखने की बात है कि विपक्ष मुक्त भारत रखने की चाल तो नहीं है ऐसा हुआ तो लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा.

बगैर विपक्ष के लोकतंत्र की कल्पना करना संभव नहीं है क्योंकि इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है जब हमारे देश में राजतंत्र की व्यवस्थाएं चल रही थी उस समय जो जो निरंकुश शासक हुए हैं उन्होंने सबसे पहले विपक्ष को खत्म किया है और स्वयं का विकल्प खत्म किया है परिणाम यह हुआ कि राजा निरंकुश होते गए और परिवारवाद का वह हमेशा से ही रहा है लिए अयोग्य राजा बनते गए.

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सवाल यह उठता है अगर परिवारवाद की बात है तो BJP में ऐसा नहीं होता है नरेंद्र मोदी अपने परिवार के साथ नहीं रहते हैं अथवा अपने परिवार को तवज्जो कम देते हैं लेकिन इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है कि उनका परिवार भी है और उनके अलावा बीजेपी के अन्य नेताओं के भी परिवार हैं और परिवारवाद हावी होता है तो सगे संबंधी और तमाम सारी विधाएं हैं परिवार की ! उनमें से अपने पराए प्रकट हो जाते हैं सवाल यहां खत्म नहीं हुआ क्योंकि जब कांग्रेस का गठन हुआ तब कांग्रेस में भी परिवारवाद नहीं था लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता गया और परिवारवाद हावी होता गया और एक परिस्थिति ऐसी बनी जब कांग्रेस किसी व्यक्तिगत प्रॉपर्टी के रूप में उभरकर सामने आ गई !

उस समय सभी की आस्था कांग्रेस में थी लेकिन जब महसूस हुआ कि कांग्रेस का बर्ताव ठीक नहीं है व्यवहार ठीक नहीं है और न्याय संगतता खत्म हो रही है तब दूसरी दूसरी पार्टियों पनपने लगी और सभी को विरोध करने का बराबर हक था पार्टियां देर में बड़ी हो पाई यह पार्टियां देर में उभरकर अपना वर्चस्व बना पाए उसका कारण यह था कि लोगों में कांग्रेस के प्रति गहरी आस्था थी लेकिन विपक्ष मजबूत होकर सामने कब आया जब उनके नेता प्रतिभावान थे और कांग्रेस का त्याग करके पद की लोलुपता त्याग करके दूसरी पार्टियों में आए उन नेताओं को यह ठीक से ज्ञात था कि शायद उनकी जिंदगी में उनकी बनाई हुई पार्टी सत्ता में आने वाली नहीं है अटल बिहारी वाजपेई जी ने भी अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा था कि- रात ढलेगी सूरज निकलेगा कमल खिलेगा लेकिन कब यह पता नहीं था.

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यह कहना उचित नहीं होगा कि देश में विपक्ष नहीं है या विपक्ष को अवसर नहीं है किंतु यह भी कहना पड़ेगा यह विपक्ष विपक्ष में वह लोग नहीं है जो होने चाहिए यह कहना गलत नहीं होगा कि देश के भविष्य के लिए युवाओं को राजनीति में आना चाहिए लेकिन राजनीति में किस तरफ से आना चाहिए यह बड़ा सवाल है धन लोलुपता पद की लालच और चाटुकारिता के कारण सत्ता पक्ष में शामिल होने के लिए भीड़ लगी होती है लेकिन आवश्यकता है वहां जहां कोई नहीं जाना चाहता वर्तमान विपक्ष का भविष्य बहुत अच्छा दिखाई नहीं दे रहा है इसलिए युवा विपक्ष की ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं ऐसा ही चलता रहा तो नेताओं की भीड़ सत्ता पक्ष में जुड़ती जाएगी और योग्य व्यक्ति विपक्ष में कम पड़ जाएंगे परिणाम स्वरुप अच्छे लोकतंत्र की कल्पना करना मुश्किल हो जाएगा.

इसलिए किशोरों से यह अपील की जाती है युवाओं से यह अपील की जाती है कि एक मजबूत विपक्ष के लिए सरकार के सामने खड़े हो चाहे वह बैनर किसी का भी हो या एक नया बैनर झंडा हो सवाल यह नहीं है कि आप किस पार्टी से जाएंगे सवाल यह है कि आप क्यों जाएंगे. सरकार की योजनाओं की अगर ठीक से समीक्षा की जाए तो अभी तक जो सफलताएं गिना रही हैं. हो सकता है वह सब खोखली ही साबित होंगी. अध्ययन का अभाव परिश्रम का अभाव है और इसीलिए भावी लोकतंत्र के लिए निराशा ही जाहिर की जा सकती है.

[स्रोत- कप्तान सिंह यादव]

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