फिर भी

हम कब तक पैसों के पीछे भागते रहेंगे

हमारी दुनिया शूरू होती है एक घर से जिसमें माॅं बाप ताऊजी, ताईजी, चाचा, चाची, 2, 3 कमरे स्नान घर के साथ हों, एक बड़ा हाॅल और रसोई घर के साथ हो, इसके ऊपर भी बिल कुल ऐसा ही बना हो और उसकी छत पर एक कमरा हो 2, 3 हजार लिटर पानी की टंकी के साथ नीचे गाड़ी पार्किंग की जगह हो ये है एक घर की परिभाषा ।
लेकिन आज की भाग दौड़ की जिंदगी में इससे कहीं ज्यादा की चाहत आदमी को आदमी से मिलने की फुर्सत ही नहीं होने देती अगर किसी से बहुत ही नजदीकी रिश्ता है तो मोबाईल फोन से हमेशा बातें होती रहेंगी चाहे कोई त्यौंहार हो शादी या पार्टी हो सब को अपडेट करते रहेंगे और फिर आज कल तो व्हाॅट्स अप बहुत काम की चीज है जिसने सब को निकम्मा कर दिया है मतलब फिजिकली रिलेशन खत्म जैसा ही कर रखा है कहीं भी आप अपने परिवार वालों या यार दोस्तों के साथ घूमने जा रहे हैं या किसी के साथ खाना खाने जा रहे हैं तो फोटो खींचा और अप लोड कर के दो लाइन लिखा और भेज दिया सब को और भेजने के बाद ऐसा महसूस होता है जैसे सारे एक साथ ही हों एक सूकून मिलता है और अपने आप को अकेला महसूस नहीं करतें।

अगर हम किसी शादी में भी शरीक होने जाते हैं तो शादी वालों के घर पर काम की वजह से सिर्फ एक दिन ही रूक पाते हैं, और उस एक दिन में भी कम से कम 5 से 6 घण्टे तो हम फोन में ही लगे रहते हैं कभी बैटरी लाॅ हो गई तो चार्जर लगाने के चक्कर में ही 1 से 1.5 घण्टे लग जाते हैं क्योंकि शादी का माहौल है तो हमारे जैसे बहुत आए हुए होंगे उनका भी यही हाल हो रहा होगा वो भी चार्जर लगाने के चक्कर में इधर उधर घूम रहे होंगे क्योंकि जो प्लग्स हैं उनमें पहले से ही चार्जर लगे होंगे और एक गार्ड उस के पास ही बैठा होगा जो हाथ में चार्जर देखते ही बोल देगा अभी लगाया है इसको थोड़ा चार्ज होने दो फिर आप लेा लेना, तो इसलिये जिस परिवार वालों की शादी में आए हैं उनसे तो हम अच्छी तरह से मिल भी नहीं पाते तभी काम निपट जाता है ।

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अगर लड़के की शादी है तो बारात वहां पहुंचते ही कुछ ठण्डा, गर्म लिया नाश्ता करने के बाद कुछ ही देर में खाना तैयार है की आवाज आ जाती है जैसे ही खाने से फारिग हुए वैसे ही अपना दोस्त फोन याद आ जाता है कब से उसे देखा भी नहीं यार चलो किसने क्या किया है की रिर्पोट लेने के बाद अपना भी फोटो खीचा ओर डाल दिया दो लाईन लिखकर । और जैसे ही दूल्हे दल्हन के फेरे पूरे हुए उधर आप कोशिश करते हैं कि वहीं से सीधे अपने घर की तरफ निकल जाते तो कुछ समय बच जाता ये दिमाग में रहता है । तो इस सारे चक्कर में आप न तो शादी का आनन्द अच्छी तरह से ले पाते हैं और ना ही उनसे मिल पाते हैं जिनके यहां शादी में आप गए हैं तो क्या ऐसी भाग दौड़ की जिंदगी अच्छी लगी । और वापस घर आने के बाद अगर अपना व्यापार है तो मैनेजर से पूरे हालात के बारे में बातें करते हैं और कहीं काम कर रहे हैं तो वो ही वापस सुबह जाना रात को वापस आना और जिस घर (फ्लैट) में आप रह रहे हैं उसमें तो बमुश्किल सात या आठ घण्टे ही निकाल पाते हैं और वो भी सोने के लिये ना कि परिवार वालों से बातें करने में क्योंकि रात को 10 या 10.30 बजे पहुंचते हैं और सुबह वापस 6 बजे तो उठना ही पड़ेगा वर्ना आॅफिस पहुंचने में देर हो जाएगी ।

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और यही सब करते करते कब 60 वर्ष आ जाते हैं पता ही नहीं चलता इतने में बच्चे बड़े होकर काम भी करने लग जाते हैं और पूरी जिंदगी उनसे अच्छी तरह से बात भी नहीं हो पाती और उसके बावजूद हम ये चाहते हैं कि जब हम बूढ़े होंगे तो बच्चे हमारा ध्यान रखंेंगे, कैसे ? हमने उन्हें बहुत अच्छी स्कूल में पढ़ाया अच्छी शिक्षा दिलवाई ताकि वो जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके उनकी पढ़ाई में किसी तरह की कोई कंजूसी नहीं की तो अच्छा है आपकी मेहनत रंग लाई, बच्चे काफी होशियार हो गए हैं किसी भी बात में अपने साथियों से पिछे नहीं हैं । लेकिन ये जो आपकी ईच्छा हैना कि हमारी सेवा करेंगे ये बात कुछ हजम नहीं होती क्यों कि आपने उन्हें अपना टाईम नहीं दिया वो भी नहीं दे पाएंगे आपने उनपर बहुत खर्च किया वो भी आपको वृद्धाश्रम में हर महीने बहुत ज्यादा रूपए भेजते रहेंगे पैसों की कोई कमी नहीं आने देंगे लेकिन उनके पास टाईम नहीं है जैसे उनके लिये आपके पास नहीं था । ये सब बातें बहुत ज्यादा धन अर्जित करने की कोशिश के कारण हुआ कि मैं अपने बच्चों के लिये बहुत पैसा मकान दुकान बनाकर दूंगा वो सब बनाकर देने में ज्यादा देर तक काम करते रहना पड़ा जिसकी वजह से आप अपने परिवार वालों को अच्छी तरह से समय नहीं दे पाए और आप मन ही मन बहुत खुश होते थे कि हमारे बच्चे बहुत आराम की जिंदगी जी सकेंगे जितनी मैंने मेहनत की है उतनी उनको नहीं करनी पड़ेगी । लेकिन जो आपने उनको बनाकर दिया है वो उन्हें कम लग रहा है इसलिये वो भी वही दोहराएंगे जो आपने किया था । और ये चलता ही रहने वाला है जब तक संतुष्टि नहीं होती । अब देखो ना महिने में 10 हजार रूपए लाने वाला भी वैसे ही अपनी दिनचर्या चलाता है जैसे 1 लाख वाला चलाता है फर्क सिर्फ इतना होगा कि वो मेहंगे कपड़े पहन लेगा, सफर फसर््ट क्लास में कर लेगा या कार में कर लेगा खाने के लिये वो ही दो रोटी ही है चाहे आप कितना भी कमा लो कमाये हुए पैसे नहीं खा सकते आप खाना तो रोटी ही पड़ेगी। ऐसी कमाई किस काम की जिससे अपने बच्चों को आप ठीक से संस्कार भी नहीं दे पाए ।

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