प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि इस दुनियाँ की भीड़ में उन्होंने खुदको अपना सच्चा मित्र पाया। इस दुनियाँ की भीड़ में भी रह कर उन्हें इस बात का एहसास होगया कि सब हमारी तकलीफ सुनने की क्षमता तो रखते है और दूसरों से अपने गम बाँट कर हमे हल्का भी लगता है
लेकिन इस दुनियाँ की भीड़ में हर इंसान ही तो यहाँ अकेला है कोई किसी के साथ ना तो आया है और ना ही जायेगा। दूसरा हमारे दर्द हमसे उधार नहीं ले सकता ख़ुशी हो या हो हमारे गहरे गम उसे केवल हम ही गहराई से समझ सकते है और कोई नहीं इसलिए खुदको अपना सच्चा मित्र बनाओ और अपनी शरण में जाके परमात्मा के अंश को पहचानो जिसने तुम्हे हमेशा समझा तुम्हे कभी अकेला नहीं छोड़ा।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
अकेले बैठ खुदसे बातें करना,
मुझे अच्छा लगता है.
इस दुनियां की भीड़ में,
मुझे मेरा मन ही क्यों सच्चा लगता है?
शायद इसलिए क्योंकि,
ज़िन्दगी की हर परिस्थिति में इसने मेरा साथ दिया.
समझा गलत मुझे इस दुनियां ने,
मगर सिर्फ उसने मुझको सम्मान दिया.
परेशानीयो में रोई तो वो मेरे साथ था,
हर ख़ुशी में भी उसके हाथो में मेरा हाथ था.
मैं ही तो हूँ वो जो मुझे समझती है.
किसी और की चाहत के लिए,
अब ये पगली नहीं तरसती है.
पहचान गई हूँ मैं खुदको अब खुदमे झाकके,.
थक गई है ये अखियाँ अब दूसरों को ताकके.
झांकेगा जो खुदमें उसे भी अपना सच्चा मित्र मिल जायेगा.
ऐसा बहादुर फिर जीवन की ठोकरे नहीं खायेगा.
अपने को पहचान कर ही हर मानव यहाँ अपनी
अनोखी पहचान बनायेगा.
धन्यवाद