प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि ज़रूरी नहीं हर औरत भोजन बनाने में रूचि रखे। ये किसी किताब में नहीं लिखा है कि अच्छा भोजन केवल नारी ही बनायेगी अब जग बदल रहा है दुनियाँ को समझना होगा नारी के भी अपने कुछ अरमान है वो भी कुछ करना चाहती है। उस पर किसी बात की ज़ोर ज़बरदस्ती न करी जाये क्योंकि जो काम दिल से नहीं होता उसमे सफलता नहीं मिलती.अब इस बात का ये मतलब भी नहीं की नारी कुछ काम ही न करे और इस बात का फायदा उठाये।मतलब यह है वो अपना दिमाग अपनी क्षमताओं को जगाने में लगाये और दुनियाँ के लिए एक उदाहरण बन जाये जिससे उसका आत्मसम्मान भी बढे जैसे कल्पना चावला, आदि। याद रखना जब औरत के सपने पूरे करने में परिवार भी उसका सहयोग देता है तब उसके भोजन में भी आभार का प्रेम छलकता है। औरत अपनी हर ज़िम्मेदारी निभाती है बस जरूरत है ये बात समझने की कि औरत केवल किचन में ही नहीं वो बल्कि बहुत से और कामो में भी अच्छी होती है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
ये ज़रूरी नहीं कि हर औरत ही, स्वादिष्ट भोजन बना पाये।
अपने भोजन से ही वो अपने रूठो को मना पाये।
औरत में खुदको समझाने के और भी गुण होते है।
उसकी क्षमताये को वक़्त पर न समझ कर,
उसके अपने ,अक्सर उसे खोकर रोते है।
कोई ज्ञान की खोज में निकलती,
तो कोई उन पाये हुये ज्ञान को पढ़ाती।
अपनी ख्वाहिशों में ही खोकर,
वो फिर किसी को भी नहीं सताती।
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उसके भी तो कुछ अपने अरमान है।
मेहनत कर उसने भी बनाई, समाज में अपनी पहचान है।
ये ज़रूरी तो नहीं कि सिर्फ औरत की ही खाना बनाने की ज़िम्मेदारी है।
समर्पण कर पूरा खुदको, नारी नहीं केवल तुम्हारी है।
उसके आत्म-सम्मान की भी जो रक्षा करता है।
उसकी करुणा का स्वाद, केवल फिर वही मनुष्य चखता है।
नारी के दुखो का पलड़ा न जाने क्यों, अक्सर ही सबको हल्का लगता है??
उसके दुखो को समझ, समाज उसे भी तो उठा सकता है।
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एक मौका तो दो उसे भी, अपने मन से जीने का।
अपनी आशाओ को न दबाकर, अपने मन का अमृत भी पीने का।
जो औरत सही कर्म की राह में, लग जाती है।
अपनों का कर सर ऊंचा, दुनियाँ में अपना नाम भी वो कर जाती है।
गिरती सम्भलती भले ही, जीवन में ठोकरे वो कई खाती है।
हर सीधी सच्ची औरत, सब पर निस्वार्थ प्यार बरसाती है।
अपनों के प्यार के आगे, वो अपना दु:ख भी भूल जाती है।
धन्यवाद