फिर भी

ये खामोशी

khamoshi

अभी तो खामोशी,
दूर तक छाई है,
उजाले की कोई किरण,
नज़र मुझे नहीं आई है,

कोई नहीं है! साथ,
इस जिंदगी के वीराने में,
जीवनसाथी बनकर साथ निभाने में,
दो बातें हो सकती है!

या तो कोई हमारे लायक नहीं,
इस ज़माने में,
या फिर हम ही काबिल नहीं,
किसी की जिम्मेदारी उठाने में,

कोई है या नहीं, हे प्रभू!
तू क्यूं इतनी देर लगा रहा बताने में,
ईक गुप्त रहस्य हो गया है जीवन,
किसे मालूम क्या निकले आने वाले,
कल के तहखाने में….???

विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न हितेश वर्मा ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com

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