फिर भी

ले चला हुजूम उसे दफ़नाने को

poetry le chla hujum use dafnane ko
कर रुख्सत उसकी हर याद-ए-तराने को,
ले चला हुजूम, उसे दफ़नाने को.

रख दिल-ए-बेशौ़ख पर हाथ तू ज़रा,
जो बयान करता है दर्द-ए-रुख्सत को,
ले चला हुजूम, उसे दफ़नाने को.

रोया बिलख कर ये दिल फिर एक बार,
चले थमे आंसू दरिया से बहने,
याद जो आयी उसकी दिल चीर के खाने को,
ले चला हुजूम, उसे दफ़नाने को.

कदमो की पायल की गूंज सुन रहा,
जो कभी कदम से कदम मिलाकर,
चलते थे सुकून देने को,
ले चला हुजूम, उसे दफनाने को.

मानो पल भर पुरानी थी बात,
कुछ पहले ही बैठी थी कान लगाए सुन रही थी बात,
मानो फिर न मिलेगा कुछ सुनने सुनाने को,
ले चला हुजूम, उसे दफनाने को.

जो ख्वाहिश थी उसकी,
कुछ उम्मीदों से बुनकर आयी थी,
साथ ले जाए कोई उसे मेला दिखाने को,
ले चला हुजूम, उसे दफनाने को.

फुर्सत से इंतज़ार करती रही वो मेरे आने का,
साज सजावट करके घर की,
बैठी थी श्रंगार अपना दिखाने को,
ले चला हुजूम, उसे दफनाने को.

मेरी तकलीफ को गले लगाकर,
यू फेरती थी हाथ,
देना पड़ रहा था कन्धा उसे उठाने को,
ले चला हुजूम, उसे दफनाने को.

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