प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि हर इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन वो खुद ही होता है क्योंकि पहले खुद गलत राह पर चल कर वो अपना आधे से भी ज़्यादा जीवन यू ही बिता देता है फिर जब उसके ही कर्म उसके आगे आते है फिर दूसरों के सुखी जीवन को देख कर वो उनसे जलता है।
कवियत्री सोचती है इंसान का असली दुश्मन उसकी खुदकी अज्ञानता उसका क्रोध अथवा अहंकार है जो उसे सही और गलत में फर्क नहीं देखने देता। इस कविता के माध्यम से कवियत्री दुनियाँ से यह कहना चाहती है की दूसरे के कहने पर किसी के प्रति गलत धारणा मत बनाओ क्योंकि तुम्हारा खुद का अनुभव ही तुम्हारा सच्चा ज्ञान है और याद रखना दोस्तों एक ही बात लोगो को अलग-अलग तरीके से समझ में आती है जैसे अज्ञानी या अहम करने वाले व्यक्ति को बस अपनी बात ही अच्छी लगती है वो दूसरों की सही बात भी अपनाना तो दूर सुनना भी नहीं चाहता। दोस्तों हो सके तो वक़्त रहते अपने ही अंदर की बुराई खत्म करो लेकिन अच्छे और सच्चे बन कर अपना नुक्सान भी मत करना क्योंकि ईश्वर का अंश दुनियाँ के कर्ण कर्ण में है और तुम भी इस दुनियाँ का एक कर्ण हो।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन वो खुद ही होता है।
अपने अहंकार के मारे ही तो,
वो जीवन के हर पड़ाव में रोता है।
दूसरों को कर, अक्सर दुखी,
वो भी कहाँ चैन से सोता है।
ऐसे मानव को कहाँ,
किसी और के दुख दर्द से मतलब होता है??
अपने ही क्रोध के आगोश में आके,
वो अपनी सुद्ध-बुद्ध भी खोता है।
इसलिए हर मानव,
अपने जीवन के दुखो का,
ज़िम्मेदार खुद ही होता है।
किसी के कहने पर किसी के लिए बुरा मत बोलो।
अपने अनुभव के ज्ञान से,
तुम भी अपने ज्ञान चक्षुओं को खोलो।
धन्यवाद