अमेरिका में नेट न्यूट्रैलिटी खत्म, भारत पर भी पड़ सकता है असर

अमेरिका की ओर से नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर एक नया प्रस्ताव पारित किया गया है ट्रंप सरकार ने ओबामा सरकार के नेट न्यूट्रैलिटी कानून को पलट कर रख दिया है. नेट न्यूट्रैलिटी खत्म करने के विरोध में अमेरिका के रेग्युलेटर्स ने शुक्रवार को वोट दिया. नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म करने का प्रस्ताव रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से कुछ दिन पहले नियुक्त भारत-अमेरिकन चेयरमैन अजीत पाई ने दिया था. net neutralityक्या है नेट न्यूट्रैलिटी

नेट न्यूट्रैलिटी के तहत माना जाता है कि सभी कंपनियां (जो इंटरनेट सेवा प्रदान करती है) उनको हर तरह के डेटा को समान दर्जा देना पड़ता है. नेट न्यूट्रैलिटी के तहत अलग-अलग डाटा के लिए कंपनियां अलग-अलग कीमत वसूल नहीं कर सकती. साथ ही इंटरनेट कंपनियों को इंटरनेट के किसी भी कंटेंट, एप्लीकेशन और डेटा को बराबरी का दर्जा देना पड़ता है. नेट न्यूट्रैलिटी का सबसे बड़ा कारण है कि इंटरनेट पर हर प्रकार की छोटी व बड़ी वेबसाइट को समान दर्जा दिया जाता है और कंपनी किसी भी ग्राहक की इंटरनेट स्पीड को काम नहीं कर सकती.

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि ओबामा प्रशासन का मत था कि इंटरनेट सेवा को एक सार्वजनिक सेवा का दर्जा दिया जाए जिसके अनुसार हर इंसान को इंटरनेट बराबर कीमत पर प्राप्त लेकिन ट्रंप सरकार ने ओबामा सरकार के इस फैसले को पलट नया फैसला जारी कर दिया है. हालांकि नेट न्यूट्रैलिटी पर ट्रंप सरकार के फैसले का काफी विरोध किया गया विरोध करने वालों का कहना है कि इससे बड़ी कंपनियों को लाभ होगा.

भारत में भी पड़ेगा नेट न्यूट्रैलिटी का असर

नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर काफी समय से भारत में बहस होती है जहां बहुत सी टेलीकॉम कंपनियां इसके समर्थन में है तो बहुत सी कंपनी इसका विरोध कर रही है. नेट न्यूट्रैलिटी को इस उदाहरण के रूप में भी समझा जा सकता है अगर 10 साल पहले नेट न्यूट्रैलिटी खत्म कर दी जाती तो Facebook जैसी कंपनियां अपनी जड़ें जमाने में नाकाम रहती क्योंकिऑरकुट और माय स्पेस जैसी विख्यात वेबसाइट सर्विस प्रोवाइडर को ज्यादा पैसा देकर अपनी स्पीड बढ़ा सकती थी और तेजी से प्रसार और प्रचार कर सकती थी. ऐसा हुआ होता तो Facebook जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट को मार्केट में अपने जड़ें जमाने का मौका नहीं मिलता.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अगर भारत में भी नेट न्यूट्रैलिटी को खत्म किया जाता है तो छोटी वेबसाइट और स्टार्टअप के लिए सरवाइव कर पाना काफी मुश्किल हो जाएगा क्योंकि बड़ी-बड़ी और विख्यात कंपनी सर्विस प्रोवाइडर को पैसे देकर अपनी स्पीड बढ़ा सकती हैं इसलिए नए बिजनेस और छोटी वेबसाइट को कहीं ना कहीं बहुत बड़ा नुकसान पहुंचेगा अगर वह इस नुकसान से बचना चाहेंगे तो उनको ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेगे.

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