बच्चों को ब्लू व्हेल गेम ना खेलने दे पेरेंट्स

ब्लू व्हेल गेम पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। ब्लू व्हेल एक खतरनाक गेम  है। माना जा रहा है कि यह गेम दुनिया भर में करीब 250 बच्चों की जान ले चुका है। भारत में भी इस गेम की चपेट में एक बच्चा आया है, जो कि मुंबई अंधेरी वेस्ट का रहने वाला है। 14 साल के मुंबई के इस किशोर ने ब्लू व्हेल गेम चैलेंज को पूरा करने के लिए सातवीं मंजिल से कूद कर अपनी जान दे दी। यह गेम सभी पेरेंट्स के लिए चिंता का विषय बन गया है।Blue Whale Game

क्या है ब्लू व्हेल गेम-: यह गेम रूस के फ्लिप बुडेकिन ने ने 2013 में बनाया था। इस गेम में एक चैलेंज दिया जाता है जिसे 50 दिनों में पूरा किया जाता है। इस में अंतिम चेलेंज आत्महत्या का होता है, प्रत्येक चैलेंज को पूरा करने पर हाथ में कट लगाने को कहा जाता है, जब चैलेंज पूरा हो जाता है तो हाथ में एक व्हेल जैसी आकृति उभर आती है। पिछले साल पोकोमोन गो गेम  वह भी चर्चित रहा था। इस गेम को खेलते हुए यूज़र्स इस गेम में इतना खो जाते थे कि आस-पास क्या हो रहा है उन्हें पता ही नहीं होता था, जिसकी वजह से कई लोग दुर्घटना के शिकार हुए थे।

बच्चों पर रखे निगरानी-: ऑनलाइन दुनिया में बहुत से गेम और ऐप्स ऐसे हैं जिसमें अलग अलग चेंज पूरे करने होते हैं, जिन्हें खेलना और पूरा करना खतरनाक हो सकता है। इस तरह के चैलेंजिंग गेम की तरफ बच्चे जल्दी आकर्षित होते हैं और उन चैलेंजेज को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने की कोशिश करते हैं। अगर आपके बच्चे भी छिपकर गेम खेल है तो उन पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर आपके बच्चे भी वर्चुअल दुनिया में ज्यादा रहने लगे हैं तो पेरेंट्स को सतर्क होने की आवश्यकता है।

[ये भी पढ़ें : भारत और चीन में युवा इंटरनेट यूजर्स की संख्या पहुंची 32 करोड़]

कैसे रखें ध्यान-:  बच्चों को तकनीकी से या गेम्स से पूरी तरह अलग करना भी ठीक नहीं है, परंतु आपके बच्चे कौन से गेम या चैलेंजेज में हिस्सा ले रहे हैं उस पर ध्यान रखने की जरूरत है। बच्चों की सर्फिंग और ब्राउजिंग पर ध्यान देने के लिए कंट्रोल ऐप्स और सॉफ्टवेयर की मदद ली जा सकती है। इसके लिए क्यूस्टूडियो, ओपनडीएनएस फैमिली, शील्ड किटलॉगर, स्पारिक्स फ्री की लोगर, स्क्रीन टाइम पैरेंटल कंट्रोल आदि ऐप्स उपयोगी हो सकते हैं।

जो बच्चे अपना अधिकांश समय इंटरनेट सर्फिंग या ब्राउजिंग में बिताते हैं उन्हें इंटरनेट “एडिक्शन डिसऑर्डर” से ग्रस्त होने की ज्यादा आशंका होती है। इसीलिए बच्चों को अधिक इंटरनेट की लत ना हो उसके लिए मोबाइल का अधिक उपयोग न करने दे। अगर स्टडी के लिए उन्हें ब्राउजिंग की आवश्यकता पड़ती है तो पेरेंट्स को इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि आपका बच्चा क्या ब्राउज कर रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.