फिर भी

माता-पिता का बलिदान

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को अपने माता-पिता का आदर करने की प्रेरणा दे रही है. वह कहती है कि आज समाज भले ही अच्छे के लिए बदल रहा है लेकिन हमारे संस्कार कही पीछे छूटे जा रहे है। आज कल के युवा ये भूल रहे है की उनके माता पिता ने उनके लिए कितना कुछ करा है लेकिन आज जब उनके करने की बारी है तब वह अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछा छुड़ाते है। अपने माता पिता का आदर नहीं करते, उन्हें बेसहारा छोड़ देते है।

इन पक्तियों द्वारा कवियत्री समाज को माता-पिता के किये बलिदान को याद दिला रही है। आज कल के युग में दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत है। दोनों को ही एक दूसरे से बहुत कुछ सीखना है, जैसे माता पिता ने हमारा हाथ बचपन में थामा था आज हमे उनका हाथ थामना है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

ख्याल रखो उनका जो कभी,
तुम्हारा ख्याल रखते थे।
सबको छोड़ ,वो अपने में भी तो,
मद मस्त रह सकते थे??
फिर क्यों उन्होंने अपना जीवन,
अपने बच्चों के लिए लूटा दिया।
एक पल नहीं लगा तुम्हें,
तुमने अपने जीवन से उन्हें कैसे निकाल दिया??

ख्याल रखो उनका जो कभी,
तुम्हारे लिए रातों में जागते थे.
अपनी नींदे उड़ाके,
वो तुम्हारे पीछे भागते थे।
एक पल नहीं लगा तुम्हे उन,
रातों को भुलाने में,
चैन कैसे मिलता है तुम्हे,
उनको बिन बात पर रुलाने में??

ख्याल रखो उनका जो कभी,
तुम्हारे पहले कदम पर मुस्कुराये थे.
भीगी थी पलकें ख़ुशी से जिनकी ,
जब तुम्हारे वो पहले कदम डगमगाये थे।
एक पल नहीं लगा तुम्हे उन,
यादो को भुलाने में.
हर एक जन की मेहनत लगती है,
अपना जीवन यूँ शांति से बिताने में।

ख्याल रखो उनका जो कभी,
तुम्हें सामने बिठा कर खिलाते थे।
रूठ भी जाओ कभी तो,
वो प्यार से तुम्हें मनाते थे।
एक पल नहीं लगा तुम्हें,
उस भोजन में छुपे प्यार को भुलाने में,
हाथ जले थे उस माँ के,
तेरे लिए वो प्यार भरा भोजन बनाने में।

धन्यवाद, कृप्याआप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।

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