भिलाई जिले में नहीं बदले हालात

भिलाई : जनवरी माह में दलित समस्याओं को लेकर भिलाई में सर्वेक्षण का कार्य प्रारंभ हुआ । दलित शोषण मुक्ति मंच द्वारा भिलाई शहर के आस-पास के गांव में दलित बस्तियों में जाकर दलित समुदाय एवं सामान्य जन समुदाय के बीच विभिन्न किस्म के संबंधों सहित दलित बस्तियों एवं उससे जुड़ी हुई विभिन्न समस्याओं को लेकर सर्वेक्षण का कार्य आरंभ किया गया ।

भिलाई जिले में नहीं बदले हालात

स्टेशन मरोदा की बस्ती में नहीं है आंगनबाड़ी केंद्र –

सर्वेक्षण के दौरान बातचीत में यह बात सामने उभर कर आई थी, कि स्टेशन मरोदा के दलित बस्ती सतनामी पारा में एक भी आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, ना ही यहां के बच्चों को उसी बस्ती में स्थित दूसरे आंगनबाड़ी केंद्र में दाखिला दिया जाता है । सर्वेक्षण में यह भी बात पता चली कि शासन द्वारा आंगनबाड़ी के माध्यम से गर्भवती महिलाओं के लिए मिलने वाली विभिन्न सुविधाओं सहित अन्य पोषक पदार्थों को भी इन्हें उपलब्ध नहीं कराया जाता ।

वहीं इस बस्ती में जहां लगभग 200 घर हैं, वहीं पीने का पानी भरने के लिए बी.एस.पी. तालाब तक या नेवाई भाटा तक जाना पड़ता है, क्योंकि 3 नलकूप होने के बावजूद उसमें पानी ना आने की स्थिति जस की तस बनी हुई है एवं निगम इस बस्ती के नालियों की साफई तक नहीं करता ।

शहरी बस्तियों में भी जारी है छुआछूत की समस्या –

उमर पोटी में सर्वेक्षण के दौरान पता चला कि शहर से लगे हुए होने के बावजूद आज भी कुछ सवर्ण लोगों द्वारा शादी ब्याह जैसे कार्यक्रम में दलित बस्ती के साथियों को आमंत्रित करने के बजाय उनके बस्ती में दाल चावल सब्जी तथा अन्य सामग्री भेज दी जाती है । वहीं कुछ सवर्ण लोग जो प्रगतिशील मूल्यों को समझने लगे हैं वह अपने कार्यक्रमों में अपने दलित मित्रों को बुलाते हैं एवं दलित समुदाय के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं ।

फिर भी,
शहरी क्षेत्रों में हालात तो सुधरने ही चाहिए ! जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों को सरकारी उपक्रम सुधारने में असमर्थता व्यक्त करते ही रहे हैं ? इस सर्वेक्षण टीम में दलित शोषण मुक्ति मंच के साथी अशोक खातरकर, बेदन लाल गेन्द्रे, एस जोगाराव, राम निहोर, शांत कुमार, सत्यनारायण आदि शामिल थे ।

[स्रोत- घनश्याम जी.बैरागी]

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