हमारे पास केवल अब कुदरत का लेखा है

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि भविष्य में क्या लिखा है ये किसी को भी नहीं पता क्योंकि कभी-कभी हम जब कुछ अच्छा सोच कर करते है वो हमारे लिए अच्छा होता नहीं है।

हमारे पास केवल अब कुदरत का लेखा है

कवियत्री सोचती है इंसान भगवान की बातो को दिमाग से नहीं समझ सकता है वो केवल सबकी कल्पनाओ में है उन्हें सच्चे दिल और सच्चे भावो से ही समझा जा सकता है उनकी दी हुई कई किताबे है हमारे पास लेकिन उनका अकार अभी बस हमारी कल्पनाओ में ही है और सबकी सोचने की क्षमता एक जैसी नहीं होती किसी को वो मूर्ति में दिखते है तो कोई उन्हें अपने हृदय में ही पा लेता है लेकिन इन आँखों से अगर हम ईश्वर को देखना चाहे तो अपने माता-पिता में उन्हें ढूंढो क्योंकि इस दुनियाँ में इतना महान कोई भी रिश्ता नहीं होता जो अपना पूरा जीवन ही किसी के लिए समर्पण करदे लेकिन साथ में ये भी याद रहे प्यार दोनों तरफ से होता है क्योंकि गलत तो गलत ही होता है चाहे वो छोटा हो या बड़ा।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

कल किसने देखा है,
मेरे हाथो में बनी, तो बस आज की रेखा है।
हमारे पास केवल अब कुदरत का लेखा है।
मगर क्या किसी ने उन्हें कभी देखा है??
जीवन के तपते संघर्षो की धूप के रहते,
हर एक ने यहाँ खुदको उस धूप में सेका है।

उस तपन की अग्नि में जलकर,
हर माता पिता ने अपने बच्चो को पाला है।
हर परिस्थिति से लड़कर,
उन्होंने खुदको हर हाल में ढाला है।
जो ना समझे यहाँ एक दूसरे का दर्द,
उसका मन कितना काला है.

प्रेम की अग्नि तो दोनों तरफ से जलती है।
जो ना समझे उस निस्वार्थ प्रेम की गहराई को,
उसे बड़े महलों में भी रहकर,
कहाँ सुकून भरी शांति मिलती है??

धन्यवाद

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