फिर भी

मैं कौन हूँ.

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि हम कौन है कहाँ से आये है ये एक ऐसा सवाल है जो हर एक के मन में आता है हम उस रोबोट की तरह है जिसे अपने बनाने वाले के बारे में ज़्यादा कुछ तो नहीं पता लेकिन हर अच्छी किताब को पढ़कर हमने ये जाना कि ईश्वर हम सब के अंदर वास करते है और हम इंसान उनकी बनाई हुई दुनियाँ में बस कुछ ही पल के मेहमान है।

इस कविता के ज़रिये कवियत्री पेड़ का उदाहरण देकर अपने अस्तित्व की पहचान करवा रही है वह सोचती है जैसे पेड़ अपनी टहनिया बढ़ाकर अपनी एक छोटीसी दुनियाँ बसाता है वैसे ही हम भी यहाँ रिश्तो के बंधन में बंधे हुये है सब रिश्ते एक साथ यहाँ रहकर अपना जीवन गुज़ारते है लेकिन पत्ते सूख जाने पर उसका अस्तित्व मिटता हुआ दिखाई देता है फिर नये पत्ते आकर उसे फिर से हरा भरा कर देते है वैसे ही हम इंसान यहाँ कुछ पल बिताकर अपने कार्य पूरा कर सुख कर पत्ते की भाती झड़ जाते है फिर नया शरीर और नये रिश्तो के साथ इस दुनियाँ में आते है किसी ने खूब लिखा है जीवन का मतलब तो आना और जाना है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

मैं कौन हूँ,
कहाँ से आया हूँ??
ये रिश्तो की सौगात,
क्या मैं रब से लाया हूँ??
कुछ साल इस ईश्वर की बनाई दुनियाँ में मुझे बिताना है।
अपनी छोटीसी दुनियाँ को मुझे अपने तरीके से सजाना है।
बिछड़ते है यहाँ सब पेड़ की डाली के सूखे पत्ते की तरह,
हरा भरा कब तक रहेगा ये पेड़,
कोई मुझे ये तो बतादे ज़रा।
वो पेड़ भी तो अपनी टहनियों को बढ़ाकर,
अपना घरोंदा सजाता है।
अपनों से बिछड़ने का गम,
वो खुदको सुखाकर जताता है।
अपने को यू दर्शाकर,
वो हमे भी हमारे अस्तित्व का एहसास कराता है।
इंसान ही तो है,
हमे भी यहाँ, कुछ पल बिताकर, रवाना होना है।
इस दुनियाँ की भीड़ में,
हम सबको, एक ना एक दिन, अपनों को खोना है।

धन्यवाद

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