मोदी सरकार के ये मंत्री क्यूँ दे रहे हैं इस्तीफा

वर्ष 2014 में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी अब तक का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल परिवर्तन करने जा रहे हैं। इस फेरबदल में कुछ जाने पहचाने चेहरे पर्दे के पीछे चले जाएंगे तो कुछ को मंत्री पद सा स्वाद पहली बार चखने को मिलेगा। लेकिन सवाल तो यह है कि जिन चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है, उसके पीछे कारण क्या है। आइये ज़रा इन तथ्यों पर गौर फरमाएँ-Narendra Modi & Amit Shah

रेल मंत्रालय: सुरेश प्रभु

विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र की अर्थव्यवस्था में रेलवे उद्योग का बहुत बड़ा योगदान है। यह बात मोदी सरकार के टेक सेवी रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु, कार्यभार सम्हालते समय बखूबी जानते थे। प्रधानमंत्री ने अपने टेक्नोलोजी पसंद मंत्री से उम्मीद लगाई थी की वो गिरती हुई और बीमार रेल व्यवस्था की पटरी को वापस ट्रेक पर ले आएंगे। रेलवे में निवेश की बढ़ोतरी, आए दिन होने वाले रेल हादसों पर लगाम लगाना आदि वो बड़े उद्देश्य थे जो सुरेश प्रभु जी के टू-डू लिस्ट में सबसे ऊपर हो सकते थे।

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लेकिन पिछले तीन वर्षों का रिपोर्ट कार्ड तो कुछ और हो कहता है। पिछले एक महीने में तीन बड़े रेल हादसे और रेलवे का कायाकल्प के लिए फंड की कमी का हर पल रोना, प्रभु जी की कार्यशैली का कुछ और ही बखान करता है। शायद इसी कारण से सुरेश प्रभु जी ने रेलवे मंत्रालय से इस्तीफा देने की पेशकश खुद ही कर दी और मोदी जी ने इसपर चुप्पी साध ली। कहा भी गया है “मौनम स्वीकृति लक्षणम”।

जल संसाधन एवं गंगा मंत्रालय : उमा भारती

प्रधानमंत्री जी ने गंगा सफाई अभियान का मंत्र फूँक कर विश्व प्रसिद्ध जीत हासिल की थी। यहाँ तक की चुनाव जीतने के बाद उन्होनें गंगा मंत्रालय के नाम से एक नया मंत्रालय भी खोल दिया और उमा भारती जी को इसका कार्यभार सौंप दिया। भारती जी ने भी जोश में कह दिया कि या तो वो गंगा साफ करेंगी या फिर जल समाधि ले लेंगी। अब हालत यह है की पिछले तीन वर्षों के अंदर गंगा की सफाई का हाल देखकर कोर्ट और NGT को भी सरकार को फटकार लगानी पड़ी है और हम सब जानते हैं कि सुश्री भारती जी का जल समाधि का भी कोई विचार नहीं दिखाई दे रहा है।

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हालांकि उन्होने कहा है कि अगले चुनाव से एक वर्ष पूर्व गंगा की सफाई का पहला चरण पूरा हो जाएगा और जून 2017 तक गंगा साफ दिखाई देने लगेगी। लेकिन वास्तविकता तो सबके सामने है। हर वर्ष ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ के नाम से जो भी बजट आबंटित होता था, यह अब तक का रिकॉर्ड है की उसका आधा भी इस कार्य पर खर्च नहीं हो रहा है। इससे कार्य की प्रगति का लेखा-जोखा खुद ही सामने आ जाता है। ऐसे में मोदी जी और कितना धैर्य रखेंगे, यह तो शायद वे स्वयं भी नहीं जानते।

स्किल डेवेलपमेंट मंत्रालय : राजीव प्रताप रुडी

बीजेपी ने चुनाव लड़ते समय 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था। इस वादे को पूरा करने के लिए एक नया मंत्रालय ‘स्किल डेवेलपमेंट मंत्रालय’ के नाम से खोला गया जिसका कार्यभार बिहार के युवा नेता राजीव प्रताप रुडी को दिया गया। कुछ समय बाद यह सुना गया की चुनावी वादा, नए रोजगार देने का नहीं बल्कि रोजगार के लायक नए युवा बनाने का था। इसके लिए स्किल डेवेलपमेंट मंत्रालय ने स्किल डेवेलपमेंट सेंटर और स्किल डेवेलपमेंट यूनिवर्सिटी बनाने की योजना थी। योजनाएँ तो बहुत सुंदर थीं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। अभी तक इस दिशा में कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।

कृषि मंत्रालय: राधामोहन सिंह

प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने से लेकर नरेंद्र मोदी जी ने किसानों के भले की बात करते हुए, 2022 तक किसानों की आय को दुगुना करने का प्रोमिस किया था। लेकिन वास्तविकता यह है कि पिछले 3 सालों में किसानों की आत्महत्या की दर में तेजी से वृद्धि हुई है। खासतौर से महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो यह अब आम बात हो गयी है। इन हालातों में मोदी जी अब शायद कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।

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जल संसाधन राज्य मंत्रालय: संजीव बालियान

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेता जो कृषक बैकग्राउंड से हैं इसलिए मोदी जी ने उन्हें जल संसाधन मंत्री बनाया गया। क्यूंकी गंगा का अधिकतम पानी उन्हीं के प्रभाव वाले इलाके से होकर बहता है। इस प्रकार मोदी जी एक पंथ और दो काज पूरा करना चाहते थे। संजीव से उन्हें किसानों और गंगा की सफाई तक मन से करने की बड़ी उम्मीद थी। लेकिन ऐसा लगता है की शायद वो इस उम्मीद पर पूरे नहीं उतर सके।

 

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